फिर वही दिसंबर

फिर वही सनसनाती हुई रातें हैं,

फिर से क्यों तुम्हें याद कर

              

            तुम्हारी कमी को,

                क्यों महसूस करना..

                क्यों फिर से तुम्हारी 

         यादों को समेट कर रोना..

फिर वही दिसंबर 

फिर वही सनसनाती हुई रातें हैं,

जब देखा खिड़की से झांक कर कोहरे की चादर गहरा चली है,

हमारी बेफिजूल की नजदीकियां न जाने धुंध में कब की खो चुकी हैं ..🥀🥀